देश में तलाक (Divorce) के मामले बढ़ रहे हैं. ऐसे में एलिमनी पर कब टैक्स (tax on alimony) देना होगा, ये समझना जरूरी है. भारत में तलाक लेने की रफ्तार दुनिया में सबसे कम है. वैश्विक एजेंसी ग्लोबल इंडेक्स के मुताबिक, भारत में डाइवोर्स रेट (Divorce Rate) सिर्फ1 प्रतिशत है. वहीं, दूसरे नंबर पर आने वाले वियतनाम (Vietnam) में तलाक की दर 7 प्रतिशत है. पुर्तगाल में यह सबसे ज्यादा 94 प्रतिशत है. यह दिखाता है कि भारतीय अपने संबंधों को कितना ज्यादा सहज कर रखते हैं. हालांकि, हमें आस-पड़ोस में तलाक के मामले सुनने में मिल ही जाते हैं. तलाक की प्रक्रिया में एलिमनी (Alimony) अहम पहलू है.
गुजारा भत्ता क्या है? (What is Alimony)
एलिमनी एक वित्तीय सहायता है, जो तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को भरण-भोषण के लिए देता है. इसे गुजारा भत्ता कहते हैं. तलाक के बाद पत्नी के पास गुजारा करने के लिए साधन नहीं हैं तो कानूनन पति को गुजारा भत्ता देना पड़ता है.
कब मिलता है स्थायी गुजारा भत्ता? (When wife get permanent alimony)
हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के सेक्शन 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony) तय होता है. कोर्ट पति या पत्नी में किसी एक को उनकी वित्तीय सुरक्षा और भरण-पोषण के लिए स्थायी गुजारा भत्ता दे सकता है. तलाक के हर मामले में गुजारा भत्ता मिलना कानूनी बाध्यता नहीं है. कानून में पत्नी और पति दोनों के हितों का ध्यान रखा गया है. अगर पत्नी कमा रही है, लेकिन उसकी और पति की कमाई में अंतर है तो समान जीवन स्तर बनाए रखने के लिए गुजारा भत्ता मिल सकता है.
पति को कब मिल सकता है गुजारा भत्ता? (Can husband demand alimony from wife)
अगर पत्नी की नौकरी नहीं है तो उसकी उम्र, पढ़ाई और कमाने की क्षमता को ध्यान में रखकर कोर्ट गुजारा भत्ते पर फैसला करता है. जहां पति दिव्यांग यानी शारीरिक रूप से कमाने लायक नहीं है और पत्नी कामकाजी है तो पति को भत्ता मिल सकता है.
कैसे तय होता है गुजारा भत्ता? (How court determine alimony amount)
गुजारा भत्ते का कोई फिक्स फॉर्मूला नहीं है. गुजारा भत्ता तय करने से पहले अदालत कई पहलुओं पर गौर करती है. जैसे पति की कमाई, उसकी चल-अचल संपत्ति, पत्नी की कमाई और उसकी प्रॉपर्टी, अगर बच्चे हैं तो बच्चे किसके साथ रहेंगे, शादी के कितने साल हुए हैं.
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कितनी तरह से मिल सकता है भत्ता? (Mode of Alimony)
तलाक के बाद एलिमनी यानी गुजारा भत्ता दो तरह से मिल सकता है. पहला एकमुश्त और दूसरा रेकरिंग यानी मासिक, तिमाही या छमाही. जब पति एकमुश्त गुजारा भत्ता देने की स्थिति में नहीं होता है तो मंथली गुजारा भत्ता तय किया जाता है.
गुजारा भत्ता मिलने पर कब नहीं लगेगा टैक्स? (When Alimony is not taxable)
इनकम टैक्स (Income Tax) एक्ट में डाइवोर्स के बाद पत्नी को मिलने वाली एलिमनी को लेकर कोई अलग से प्रावधान नहीं है. टैक्स के सामान्य नियमों और अदालतों के फैसलों के आधार पर गुजारा भत्ते पर टैक्स देनदारी तय होती है. अगर महिला को गुजारा भत्ता एकमुश्त मिलता है तो उसे कैपिटल रिसिप्ट (Capital Receipt) माना जाता है. इनकम टैक्स कैपिटल रिसिप्ट को इनकम नहीं मानता है. इसलिए तलाक के बाद एकमुश्त गुजारा भत्ता मिलने पर पत्नी को कोई टैक्स नहीं देना होगा.
गुजारा भत्ता मिलने पर कब लगेगा टैक्स? (Tax on Alimony)
वहीं, अगर गुजारा भत्ता रेकरिंग नेचर का है यानी मंथली या क्वॉटरली मिलता है तो उसे रेवेन्यू रिसिप्ट माना जाएगा. रेवेन्यू रिसिप्ट को आयकर कानून में इनकम माना जाता है. ऐसे में मंथली मिलने वाला गुजारा भत्ता टैक्सेबल होगा. जिसे गुजारा भत्ता मिल रहा है उसे टैक्स चुकाना होगा. इनकम स्लैब के आधार पर टैक्स लगेगा.
एलिमनी पर पति को मिलेगा टैक्स डिडक्शन? (Tax Deduction on Alimony)
ध्यान रखने वाली बात यह है कि दोनों मामलों में एलिमनी की रकम पर पति किसी तरह का टैक्स डिडक्शन क्लेम नहीं कर सकता है. ज्यादातर मामलों में गुजारा भत्ता नकद में दिया जाता है. अगर पति-पत्नी दोनों की रजामंदी हो तो प्रॉपर्टी भी एलिमनी के रूप में दी जा सकती है.
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